द्रव्य-दृष्टि 》》》 नीति दृष्टि है, युधिष्ठिर ने धर्मराज होकर भी झूठ बोला।
दिव्य-दृष्टि 》》》 सम-दृष्टि है, धर्मात्मा/अधर्मात्मा, मरने/जीने में समभाव।
मुनि श्री सुधासागर जी
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द़व्य का मतलब गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं, जबकि दिव्य का तात्पर्य जीवों को कल्याण करने में सहायक होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि द़व्य द्वष्टि का मतलब नीति द्वष्टि है, जिसमें युधिष्ठिर ने धर्मराज होकर झूठ बोला था। दिव्य द्वष्टि का तात्पर्य समद्वष्टि है यानी धर्मात्मा,अधर्मात्मा एवं मरने एवं जीने में समभाव। अतः जीवन में समभाव रखना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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द़व्य का मतलब गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं, जबकि दिव्य का तात्पर्य जीवों को कल्याण करने में सहायक होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि द़व्य द्वष्टि का मतलब नीति द्वष्टि है, जिसमें युधिष्ठिर ने धर्मराज होकर झूठ बोला था। दिव्य द्वष्टि का तात्पर्य समद्वष्टि है यानी धर्मात्मा,अधर्मात्मा एवं मरने एवं जीने में समभाव। अतः जीवन में समभाव रखना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।