देशना-लब्धि

गुरु का प्रवचन देशना-लब्धि नहीं, “देशना” भर है ।
उसे सुनने वाला स्वीकार करे तब वह देशना, “लब्धि” बनती है ।
गुरु की वाणी से सम्यग्दर्शन नहीं, देशना-लब्धि से भी नहीं,
बल्कि जिनवाणी से सम्यग्दर्शन होता है ।

मुनि श्री सुधासागर जी

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8 Responses

  1. देशना लब्धि का तात्पर्य समाचीन धर्म का उपदेश देना होता है,देशना देने वाले आचार्य आदि की प्राप्ति होना तथा उपदिष्ट अर्थ के ग़हण धारण और विचारण का सामर्थ प्राप्त होना होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि गुरु का प़वचन देशना लब्धि नहीं बल्कि देशना भर है।उसे सुनने वाला स्वीकार करे तब वह देशना लब्धि बनती है । गुरु की वाणी से सम्यग्दर्शन नहीं व देशना लब्धि से भी नहीं बल्कि जिनवाणी से सम्यग्दर्शन होता है।

    1. जिनवाणी के सही अर्थ को समझाने के लिए गुरु की शरण चाहिए ।

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