द्रव्य इंद्रियों की रचना आत्मा के प्रदेशों से।
भावेंद्रिय लब्धि* और उपयोग** रूप में॥
क्षयोपशम से भावेंद्रिय → द्रवेंद्रिय → ज्ञान/ उपयोग।
*(ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम)
**(इस लब्धि से जानना।)
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मुनि महाराज जी ने द़व्य एवं भावेंद़ि के विषय में उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! भावेंद़ि लब्धि और उपयोग रुप में होता है!
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मुनि महाराज जी ने द़व्य एवं भावेंद़ि के विषय में उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! भावेंद़ि लब्धि और उपयोग रुप में होता है!