कुछ लोग मुनियों को द्रव्यलिंगी कह कर उनके प्रति अश्रद्धा करते हैं। बस जिनवाणी (वह भी नये पंडितों द्वारा रचित) पर श्रद्धा अधिक करते हैं। तो शास्त्रों को द्रव्य-श्रुत क्यों नहीं कहते ?
मुनि श्री मंगलसागर जी
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6 Responses
मुनि श्री मंगलसागर महाराज जी ने द़व्य लिंग की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है।
द्रव्य यानी बाह्य। भाव रहित यानी लोअर गुणस्थान वाले को द्रव्य-लिंगी मुनि कहते हैं। पर अंदर के भाव और गुणस्थान कौन तय करेगा ? ऐसे ही तुम्हें शास्त्र के भावों के बारे में क्या गारंटी तो उसे द्रव्य-श्रुत क्यों नहीं कहते ? उसे तो खाली श्रुत कहते हो!
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मुनि श्री मंगलसागर महाराज जी ने द़व्य लिंग की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है।
‘द्रव्य-श्रुत’ kya muniyon ko kaha jaata hai ? Ise clarify karenge, please ?
द्रव्य यानी बाह्य। भाव रहित यानी लोअर गुणस्थान वाले को द्रव्य-लिंगी मुनि कहते हैं। पर अंदर के भाव और गुणस्थान कौन तय करेगा ? ऐसे ही तुम्हें शास्त्र के भावों के बारे में क्या गारंटी तो उसे द्रव्य-श्रुत क्यों नहीं कहते ? उसे तो खाली श्रुत कहते हो!
Iska matlab kisi bhi muni ko ‘द्रव्य-लिंगी’ kehna hi nahi chahiye ? Yeh definition hi kyun banayi phir ? Ise clarify karenge, please ?
1) जिनका शिथलाचार जाहिर हो।
तथा
2) प्रत्यक्ष ज्ञानी भावों को पढ़ कर द्रव्य लिंगी कह सकते हैं।
Okay.