द्रव्य
द्रव्य गुणों को हमेशा बनाये रखता है, इसलिए नित्य है।
साधारण/ सामान्य गुण = अस्तित्व, द्रव्यत्व, वस्तुत्व, प्रमेयत्व* आदि।
विशेष गुण = जैसे जीव में ज्ञान, दर्शन, मिट्टी में घड़ा बनने का गुण।
द्रव्य को द्रव्य के Attitude से जानना द्रव्यार्थिक नय है तब द्रव्य दिखायी देता है।
विशेष परिणति/ पर्याय को देखना पर्यायार्थिक नय है जैसे घड़ा।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र 5/4)
* जिसके द्वारा किसी न किसी ज्ञान का विषय बनता है यानी जानने में आता है।
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने द़व्य को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।