सभी द्र्व्यों में अगुरुलघु गुण की अपेक्षा स्वनिमित्तक उत्पाद-व्यय होता है । पर प्रत्यय की अपेक्षा भी धर्म आदि द्र्व्यों में होता है (जीव पुदगलों में जो परिणमन होता है, उस अपेक्षा से धर्म/अधर्म में भी होता है )।
श्री राजवार्तिक – 3
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