जो पुण्य-कर्मों में आगे,
और
पाप-कर्मों में (सबसे) पीछे रहे ।
जो बिना बोली (लगाये) खूब बोल दे, वह धर्मात्मा ।
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
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4 Responses
धर्मात्मा का मतलब धर्म को आत्मसात् करना यानी सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र पर श्रद्वान होना है। अतः मुनि श्री प़माण सागर महाराज जी ने सत्य कहा है कि पुण्य कर्मों को आगे रखना चाहिए जबकि पाप कर्मों को पीछे यानी कम करते जाना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त जो बिना बोली के ज्यादा बोलने का भाव रखता है वह धर्मात्मा होता है।
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धर्मात्मा का मतलब धर्म को आत्मसात् करना यानी सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र पर श्रद्वान होना है। अतः मुनि श्री प़माण सागर महाराज जी ने सत्य कहा है कि पुण्य कर्मों को आगे रखना चाहिए जबकि पाप कर्मों को पीछे यानी कम करते जाना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त जो बिना बोली के ज्यादा बोलने का भाव रखता है वह धर्मात्मा होता है।
“जो बिना बोली (लगाये) खूब बोल दे, वह धर्मात्मा” ka kya meaning hai, please?
बोली लगा कर दान में पुण्य तो है पर प्रायः नाम का भाव भी आ जाता है,
बिना बोली लगाये, यथाशक्ति दान में पुण्य के साथ शुभ-भाव की बहुलता होती है ।
Okay.