नहीं,
जो पाप को पाप मानकर पाप न करें, वह धर्मात्मा है ।
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धर्मात्मा का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र का पालन करता है, अथवा जो अधर्म नहीं करता है। पाप का मतलब जो आत्मा को शुभ से बचाये होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जो पाप को पाप मानकर नहीं करता है वही धर्मात्मा कहलाने योग्य होता है।
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धर्मात्मा का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र का पालन करता है, अथवा जो अधर्म नहीं करता है। पाप का मतलब जो आत्मा को शुभ से बचाये होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जो पाप को पाप मानकर नहीं करता है वही धर्मात्मा कहलाने योग्य होता है।