धर्म का फल
धर्म के फल रूप कमल, तीन को मिले….
1. तीर्थंकर को मुख्य रूप से पूर्व भवों के धर्म का फल, उत्कृष्ट शुभ कर्मों से।
2. सीता जी को उसी जन्म के धर्म का फल, मध्यम शुभ कर्मों से।
3. चांडाल को उसी जन्म के धर्म का फल, जघन्य नियम से।
जब चांडाल को कर्म नहीं हरा पाया, तो कर्म से हम क्यों हार मान लें!
मुनि श्री सुधासागर जी
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धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र है,या जीवों को संसार के दुखों से सुख में पहुंचाता है।यह दो प़कार के हैं निश्चय एवं व्यवहार धर्म। धर्म का फल वह है जिसमें स्थिरता रहना या विपत्ति आने पर भी धर्म से विमुख नहीं होता है।
मुनि श्री सुधासागर महाराज जी ने उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में धर्म में श्रद्वा व विश्वास रखना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।