धर्म-ध्यान
धर्म में ध्यान आवश्यक नहीं, सहायक है ।
ध्यान तो जानवर भी कर लेते हैं ।
धर्म तो आत्मज्ञान से होता है/आवश्यक है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
धर्म में ध्यान आवश्यक नहीं, सहायक है ।
ध्यान तो जानवर भी कर लेते हैं ।
धर्म तो आत्मज्ञान से होता है/आवश्यक है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
One Response
धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र ही होता है, जो जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख में पहुंचाने का रास्ता है। ध्यान का मतलब चित्त की एकाग्रता को कहते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि धर्म में ध्यान की आवश्यकता नहीं,यह साधन है। लेकिन धर्म तो आत्मज्ञान से होता है व आवश्यक है।