मिथ्यादृष्टि को पुण्य-बंध, संसार बढ़ाने में निमित्त, सम्यग्दृष्टि के संवर/निर्जरा/सम्यक् वर्धनी ।
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धार्मिक क़ियायें पुण्य बंध में निमित्त होती है लेकिन कोई कितनी भी धार्मिक क़ियायें पूजा, पाठ, स्वाध्याय कर लेवे, लेकिन जीवन में पवित्रता के भाव होना आवश्यक है।पवित्रता के लिये राग द्वेष, मोह को कम करना पड़ता है।अतः जीवन में पवित्रता के भाव होना चाहिए ताकि पुण्य बंध हो सकता है और पापो का त्याग करना चाहिये।
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धार्मिक क़ियायें पुण्य बंध में निमित्त होती है लेकिन कोई कितनी भी धार्मिक क़ियायें पूजा, पाठ, स्वाध्याय कर लेवे, लेकिन जीवन में पवित्रता के भाव होना आवश्यक है।पवित्रता के लिये राग द्वेष, मोह को कम करना पड़ता है।अतः जीवन में पवित्रता के भाव होना चाहिए ताकि पुण्य बंध हो सकता है और पापो का त्याग करना चाहिये।