व्यवहार नय – पिता पुत्र की अपेक्षा, “पर” सापेक्ष, भेद रूप, दर्जी द्वारा कपड़े के टुकड़े करना, निश्चय तक पहुँचाता है ।
निश्चय नय – पिता/पुत्र को हटाकर जो शेष (मैं) बचा, स्वापेक्ष, अभेदरूप, कटे टुकड़ों को सी कर सूट बनाना ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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जैन धर्म में नय के दो भेद बताए गए हैं व्यवहार नय और दूसरा है निश्चय नय। निश्चय नय अटल है उस पर विश्वास करना आवश्यक है लेकिन बिना व्यवहार के निश्चय नय भी सफल नहीं होता हैं, अतः दोनों पर आस्था रखना अनिवार्य है।
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जैन धर्म में नय के दो भेद बताए गए हैं व्यवहार नय और दूसरा है निश्चय नय। निश्चय नय अटल है उस पर विश्वास करना आवश्यक है लेकिन बिना व्यवहार के निश्चय नय भी सफल नहीं होता हैं, अतः दोनों पर आस्था रखना अनिवार्य है।