5वें गुणस्थानवर्ती तक के गृहस्थ सांसारिक ज़रूरतों की पूर्ति के लिये ध्यान करते हैं,
पर 6वें गुणस्थान व आगे के मुनियोंकी सांसारिक इच्छायें समाप्त हो जाती हैं इसलिये उनके निदान-ध्यान नहीं होता।
मुनि श्री सुधासागर जी
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निदान का मतलब मुझे भविष्य में इस वस्तु को प्राप्त करना है। जीवन में ध्यान करना आवश्यक है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि गृहस्थ संसारिक जरुरतों की पूर्ति के लिए ध्यान करते हैं,जो पांच वें गुणस्थानवर्ती तक होता है। छटवें गुणस्थान के आगे मुनियों के लिए होता है,जिनकी संसारिक इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं, इसके लिए उनको निदान ध्यान की आवश्यकता नहीं होती है।
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निदान का मतलब मुझे भविष्य में इस वस्तु को प्राप्त करना है। जीवन में ध्यान करना आवश्यक है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि गृहस्थ संसारिक जरुरतों की पूर्ति के लिए ध्यान करते हैं,जो पांच वें गुणस्थानवर्ती तक होता है। छटवें गुणस्थान के आगे मुनियों के लिए होता है,जिनकी संसारिक इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं, इसके लिए उनको निदान ध्यान की आवश्यकता नहीं होती है।