निमित्त और पुरुषार्थ
निमित्त तो दियासलाई की काढ़ी के जलने जैसा है: उतने समय में अपना दीपक जला लिया, तो प्रकाशित हो जाओगे; वर्ना गुरु ज़्यादा देर रुकते नहीं हैं। मंदिर में भगवान के दर्शन भी थोड़े समय के लिये ही होते हैं। पूर्णता तो तुम्हें ख़ुद पानी होगी।
मुनि श्री सुधासागर जी
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निमित्त ,जो कार्य के होने में सहयोगी हो या जिसके बिना कार्य न हो उसे कहते हैं।
पुरुषार्थ का मतलब चेष्टा या प़यास करना होता है,यह चार प्रकार के होते हैं धर्म,अर्थ,काम एवं मोक्ष हैं।
उपरोक्त उदाहरण मुनि महाराज ने दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः निमित्त एवं पुरूषार्थ करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।