लाडू सब तरफ़ से मीठा होता है, आत्मतत्व भी ।
रागरंग में भी विराग का अनुभव करते हैं ।
मृत्यु पर रोते नहीं (क्योंकि खुद को शरीर नहीं मानते) महोत्सव मनाते हैं,
आज महावीर भगवान तो नहीं हैं पर महावीरत्व मौजूद है ।
अमावस्या को दीपक जलाकर पूर्णिमा बना देते हैं, बाहर और अंदर भी ।
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निर्वाण का तात्पर्य भगवान् योग निरोध करके ध्यान के द्वारा शेष सर्व कर्मों का क्षय कर देते हैं और आत्मा को विशुद्ध अवस्था में स्थित हो जाना होता है। विराम का मतलब पंच इन्द्रियों के विषय से विरक्त का नाम है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि लाडू सब तरफ से मीठा होता है और आत्मतत्व भी। इसमें रंगारंग में भी विराग का अनुभव करते हैं। लोग रोते नहीं है,जो खुद को शरीर नहीं मानते हैं, बल्कि महोत्सव मनाते हैं। आज भगवान् मौजूद नहीं है पर महावीर तत्व तो मौजूद है। अमावस्या पर दीपक जलाकर पूर्णिमा बना लेते हैं,बाहर भी और अन्दर भी।
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निर्वाण का तात्पर्य भगवान् योग निरोध करके ध्यान के द्वारा शेष सर्व कर्मों का क्षय कर देते हैं और आत्मा को विशुद्ध अवस्था में स्थित हो जाना होता है। विराम का मतलब पंच इन्द्रियों के विषय से विरक्त का नाम है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि लाडू सब तरफ से मीठा होता है और आत्मतत्व भी। इसमें रंगारंग में भी विराग का अनुभव करते हैं। लोग रोते नहीं है,जो खुद को शरीर नहीं मानते हैं, बल्कि महोत्सव मनाते हैं। आज भगवान् मौजूद नहीं है पर महावीर तत्व तो मौजूद है। अमावस्या पर दीपक जलाकर पूर्णिमा बना लेते हैं,बाहर भी और अन्दर भी।