नो-कर्म, 8 कर्मों में शामिल नहीं ।
नो-कर्म, कर्म नहीं, कर्म की तरह रागद्वेष में कारण है जैसे प्रिय/अप्रिय शब्द ।
शरीर-नाम कर्म, 8 कर्मों में आते हैं । इनसे शरीर तथा शरीर से सम्बंधित चीजें जैसे सुस्वर/ दुस्वर आदि मिलते हैं ।
पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
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नोकर्म का तात्पर्य कर्म के उदय से प्राप्त होने वाला औदारिक आदि शरीर को जो जीव के सुख दुख में निमित्त बनता है।शरीर का मतलब अनन्तानंत पुदगलों के समवाय का नाम है, अथवा विशेष नाम कर्म से प्राप्त होकर जीव जीर्णं शीर्ण होता है या गलता रहता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि नोकर्म,आठ कर्मों में शामिल नहीं है।नोकर्म,कर्म नहीं,कर्म की तरह राग द्वेष में कारण है।शरीर नाम कर्म, इनसे शरीर तथा शरीर से संबंधित चीजें जैसे सुस्वर या दुस्वर आदि मिलते हैं।
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नोकर्म का तात्पर्य कर्म के उदय से प्राप्त होने वाला औदारिक आदि शरीर को जो जीव के सुख दुख में निमित्त बनता है।शरीर का मतलब अनन्तानंत पुदगलों के समवाय का नाम है, अथवा विशेष नाम कर्म से प्राप्त होकर जीव जीर्णं शीर्ण होता है या गलता रहता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि नोकर्म,आठ कर्मों में शामिल नहीं है।नोकर्म,कर्म नहीं,कर्म की तरह राग द्वेष में कारण है।शरीर नाम कर्म, इनसे शरीर तथा शरीर से संबंधित चीजें जैसे सुस्वर या दुस्वर आदि मिलते हैं।