बुद्धिमत्ता
राजा ने भूमि-दान में ब्राम्हणों को बहुत ज्यादा-ज्यादा भूमि दी क्योंकि वे विद्वान होते हैं, अन्य जाति वालों को कम। एक लुहार ने राजा से भूमि माँगी – हथौड़े से कान तक के बराबर।
जब एक मीटर भूमि उसे दी जाने लगी तब उसने जोर से हथौड़ा शिला पर मारा और कहा – हथौड़ा यहाँ, इसकी आवाज़ जहाँ-जहाँ तक कानों में पड़ी चारों ओर की भूमि मेरी।
राजा को अपनी ग़लती का एहसास हो गया कि बुद्धिमत्ता किसी जाति विशेष की नहीं होती है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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मुनि श्री प़माणसागर महाराज जी का कथन सत्य है कि बुद्विमता किसी जाति विशेष की नहीं होती है.बुद्विमता के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है.. जीवन का कल्याण करना है तो धर्म से जुडना परम आवश्यक है.