भोजन पात्र के बिना पकता नहीं, तब कैसे कहा की एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ कर सकता नहीं !
पहले पात्र पर मिट्टी लगा देते थे ताकि पात्र जल ना जाय, ऐसे ही शरीर को तपाते समय ध्यान रखें कि शरीर जल ना जाय ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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द़व्य- – गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं जिसका प़थक अस्तित्व रहता है। अतः एक द़व्य दूसरे द़व्य के निमित्त से परिणमन होता रहता है। अतः जीवन में परस्परोपकार तभी संभव है जब एक दूसरे को निमत्त प्राप्त होता है जैसे जो उदाहरण दिया गया है वह कथन सत्य है।
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द़व्य- – गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं जिसका प़थक अस्तित्व रहता है। अतः एक द़व्य दूसरे द़व्य के निमित्त से परिणमन होता रहता है। अतः जीवन में परस्परोपकार तभी संभव है जब एक दूसरे को निमत्त प्राप्त होता है जैसे जो उदाहरण दिया गया है वह कथन सत्य है।