परोपकार

Q.  –    किसी के लिये बहुत ज्यादा करो और वो प्रतिक्रिया अच्छी न दे तो मन का दुखी होना स्वाभाविक है ना ?

श्रीमति शर्मा

A.  –   संसार के न्यायालयों में भी एक गुनाह की दो सजायें नहीं मिल सकतीं ।
फिर कर्म सिद्धान्त के न्यायालय में एक पुण्य-कर्म के दो इनाम कैसे मिल सकते हैं ?
पहला इनाम-पुण्य का फल तो आपके खाते में जमा उसी समय हो गया जब आप ने किसी के लिये कुछ किया ।
फिर आप सामने वाले से अच्छी प्रतिक्रिया के रूप में दूसरे इनाम की चाहना क्यों रखते हैं ?
वैसे भी सामान्य से अधिक यदि आप किसी के लिये कुछ करते हैं तो क्या आप कर्म-सिद्धान्त में दखलंदाजी नहीं कर रहे हैं ?
यह अधिकार आपको किसने दिया ?

सलाह –  किसी पर अति उपकार मत करो,
वरना बदले में आपके अंदर चाहना की भावना आना स्वाभाविक है ।

Share this on...

4 Responses

  1. Yes i agree coz there is only one reason of pain EXPECTION……..aasha hi mat karo to nirasa nahi hogi.

  2. ITNA SUNDAR SUBICHAR..
    kai logon ko forword karunga.
    APEKSHA AUR UPEKSHA DO HI CHEEZ HE JO BAHUT TAKLIF DETI HE.
    isse dur ho jao..
    Sukhi ho jaoge.

  3. If welfare or charity is done with an intention of getting praise or something in return it cease to be a charity. If you give from one hand the other hand need not to know.
    Yes, expectation generates pain but it is wise not to expect returns specially for the good work.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

April 3, 2011

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031