पुण्य
पुण्य के लिये (फल भोगने) पुण्य करना हेय है ।
पापों से बचने तथा आत्मशुद्धि के लिये की गयी पुण्य क्रियायें उपादेय हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पुण्य के लिये (फल भोगने) पुण्य करना हेय है ।
पापों से बचने तथा आत्मशुद्धि के लिये की गयी पुण्य क्रियायें उपादेय हैं ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी