नोकर्म-बंध के हेतु – शरीर/प्रियजन।
कर्म-बंध तो भीतर चल रहा है।
नोकर्म-बंध टूटे तो कर्म-बंध टूटे,
कर्म-बंध टूटे तो नोकर्म-बंध छूटे।
इस तरह पुदगल-परावर्तन दो रूप – नोकर्म-रूप तथा कर्म रूप।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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पुदगल का तात्पर्य परिवर्तन जो पूरण और गलन स्वभाव होता है, अथवा जिसमें रुप,रंग,गंध और स्पर्श यह चारों गुण पाए जाते हैं।नोकर्म का मतलब कर्म के उदय से प्राप्त होने वाले औदारिक शरीर के जीव में सुख दुःख बनाता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि नो कर्म बंध के हेतु शरीर या प़ियजन हैं।कर्म बंध तो भीतर चलता रहता है, अतः जब नो कर्म बंध टूटे तो कर्म बंध टूटे, अतः जब कर्म बंध टूटे तभी नो कर्म बंध छूटे। इस प्रकार पुदगल परावर्तन दो रुप नो कर्म एवं कर्म रुप। अतः नो कर्म बंध टूटना आवश्यक है, ताकि कर्म बंध समाप्त हो सकते हैं।
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पुदगल का तात्पर्य परिवर्तन जो पूरण और गलन स्वभाव होता है, अथवा जिसमें रुप,रंग,गंध और स्पर्श यह चारों गुण पाए जाते हैं।नोकर्म का मतलब कर्म के उदय से प्राप्त होने वाले औदारिक शरीर के जीव में सुख दुःख बनाता है। उपरोक्त कथन सत्य है कि नो कर्म बंध के हेतु शरीर या प़ियजन हैं।कर्म बंध तो भीतर चलता रहता है, अतः जब नो कर्म बंध टूटे तो कर्म बंध टूटे, अतः जब कर्म बंध टूटे तभी नो कर्म बंध छूटे। इस प्रकार पुदगल परावर्तन दो रुप नो कर्म एवं कर्म रुप। अतः नो कर्म बंध टूटना आवश्यक है, ताकि कर्म बंध समाप्त हो सकते हैं।