गर्भादि कल्याणकों का अर्घ चढ़ाते हैं, मुनि भी भाव पूजा करते हैं,
पर तीर्थंकरों के 8 वर्ष बाद अणुव्रती होने पर भी उनकी पूजा नहीं की जाती ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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4 Responses
पूज्य वही होते जिनकी पूजा और अर्घ चढ़ाते हैं। तीर्थंकरों के गर्भ में आने पर होने वाला उत्सव को गर्भादि कल्याण कहते हैं, इसमें इस अवसर पर इन्द्र आकर तीर्थंकर के माता-पिता को भक्ति पूर्वक सिंहासन पर बैठाकर उनका अभिषेक,सम्मान आदि करते हैं। इसलिए सभी अर्घ चढ़ाते हैं लेकिन मुनि सिर्फ भाव पूजा करते हैं। लेकिन तीर्थंकरों के आठ वर्ष बाद अणुव्रती होने पर भी उनकी पूजा नहीं की जाती है।
8 वर्ष के बाद या मुनि अवस्था से पहले पूजा रागी व्यक्ति/ अवस्था की हुई,
जबकि उन्हीं के कल्याणकों की पूजा उस महान क्षण/ अवसर की हुई, इस भावना से कि मेरे जीवन में भी ऐसे अवसर आयें;
रागी बनने के तो भाव भी नहीं रखते ।
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पूज्य वही होते जिनकी पूजा और अर्घ चढ़ाते हैं। तीर्थंकरों के गर्भ में आने पर होने वाला उत्सव को गर्भादि कल्याण कहते हैं, इसमें इस अवसर पर इन्द्र आकर तीर्थंकर के माता-पिता को भक्ति पूर्वक सिंहासन पर बैठाकर उनका अभिषेक,सम्मान आदि करते हैं। इसलिए सभी अर्घ चढ़ाते हैं लेकिन मुनि सिर्फ भाव पूजा करते हैं। लेकिन तीर्थंकरों के आठ वर्ष बाद अणुव्रती होने पर भी उनकी पूजा नहीं की जाती है।
Iska kya reason hai?
8 वर्ष के बाद या मुनि अवस्था से पहले पूजा रागी व्यक्ति/ अवस्था की हुई,
जबकि उन्हीं के कल्याणकों की पूजा उस महान क्षण/ अवसर की हुई, इस भावना से कि मेरे जीवन में भी ऐसे अवसर आयें;
रागी बनने के तो भाव भी नहीं रखते ।
Okay.