प्रतिक्रमण

मुनियों से भी गलतियाँ होती है (जाने/अनजाने), चौथे काल में भी गलतियाँ होतीं थीं। इसलिए उन्हें प्रत्येक दिन तीन बार प्रतिक्रमण करना होता है । ताकि वे 6 गुणस्थान से नीचे ना गिरें और ऊपर के गुणस्थानों में चढ़ें ।
पंचमकाल में तो – जानें कुछ है नहीं(अज्ञान), मानें कुछ है नहीं(अश्रद्धा) ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

Share this on...

One Response

  1. प़तिकमण का मतलब किए गए दोषों की निवृत्ति का नाम है।जब साधुओं के चारित्र का पालन करने में कोई दोष हो जाता है,तब मन वचन काय के द्वारा पश्चाताप का परिणाम उत्पन्न होता है।यह साधुओं का मूल गुण है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है मुनियों से गलतियां होती हैं तो प़त्येक दिन तीन बार प़तिकमण करना आवश्यक है ताकि वे 6 गुणस्थान से नीचे न गिर जाएं। अतः श्रावक को भी अपने किए दोषों का निवारण प़तिकमण करना आवश्यक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

November 23, 2021

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930