प्रमाद में यदि कोई लेटा है तो हिंसा कैसे ?
क्योंकि वह अपने चैतन्य प्राण का घात कर रहा है/ अपने स्वभाव में नहीं रह रहा है सो निश्चय हिंसा है।
प्रमाद मद से बना है, इसी से मदिरा शब्द बना, जिसमें विवेक नहीं रहता।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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2 Responses
प़माद का तात्पर्य अच्छे कार्यों के करनें के लिए आदर भाव नही रहना है, तीव़ कषायों के उदय के कारण प़माद रहता है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।जीवन में प़माद से बचना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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प़माद का तात्पर्य अच्छे कार्यों के करनें के लिए आदर भाव नही रहना है, तीव़ कषायों के उदय के कारण प़माद रहता है। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।जीवन में प़माद से बचना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
Hum sirf pramad mein hi rahte hai , jagrat rahena hai 🙏