प्रमाद के भेद…
5 = …विकथा, कषाय, इन्द्रिय प्रवृत्ति, निद्रा, स्नेह
15 =………4 +…4 +..5.+………….1+..1
37500 = 25 x 25 x 6(5+मन) x 5 x 2(1+मोह)
1 से 6 गुणस्थानों में – ज्यादा से कम की ओर
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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प़माद का तात्पर्य अच्छे कार्यों में आदर भाव नहीं रहता है। अतः मुनि महाराज ने प़माद के भेद बताए हैं वह पूर्ण सत्य है। मनुष्य को प़माद छोड़ना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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प़माद का तात्पर्य अच्छे कार्यों में आदर भाव नहीं रहता है। अतः मुनि महाराज ने प़माद के भेद बताए हैं वह पूर्ण सत्य है। मनुष्य को प़माद छोड़ना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।