बोलना
कविता में अनुशासन होता है; शब्दों का Repetition न होने आदि का।
इसीलिये उसे बार-बार सुनने का मन होता है, सुहावनी होती है।
गद्य में ऐसा नहीं।
ऐसे ही बोलने में अनुशासन (हित, मित, प्रिय) होना चाहिये, तब लाभ ज्यादा। इसीलिये आचार्य ने कहा → प्रमत्त-योगात्प्राण-व्यप-रोपणं हिंसा यानी प्रमाद के साथ बोलना (योग) हानिकारक है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
6 Responses
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने बोलना का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में बोलने के लिए प़माद नहीं होना चाहिए बल्कि अनुशासित होना परम आवश्यक है।
‘गद्य’ ka kya meaning hai, please ?
साधारण लिखावट जैसे निबंध आदि ।
हिंसा यानी प्रमाद के साथ bolne ke kya examples hain ?
एक व्रती के बोलने में गालियाँ निकल जातीं थीं । उनको pointout करने पर वे कहते मैंने कब कहा !
यानी प्रमादवश/ असावधानीवश बोलते थे ।
Okay.