मिथ्यादृष्टि संसार में भयभीत रहता है, सम्यग्दृष्टि संसार से ।
मुनि श्री संस्कारसागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि मिथ्याद्वष्टि हमेशा संसार में भयभीत होता रहता है जबकि सम्यग्द्वष्टि संसार से होता है।अतः जीवन को मिथ्याद्वष्टि को छोड़कर सम्मग्द्वष्टि बनने का प्रयास करना आवश्यक है ताकि जीवन सार्थक हो सकता है।
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उपरोक्त कथन सत्य है कि मिथ्याद्वष्टि हमेशा संसार में भयभीत होता रहता है जबकि सम्यग्द्वष्टि संसार से होता है।अतः जीवन को मिथ्याद्वष्टि को छोड़कर सम्मग्द्वष्टि बनने का प्रयास करना आवश्यक है ताकि जीवन सार्थक हो सकता है।