बुद्धि / मन
संकल्प बुद्धि से लिया जाता है, पर मन संकल्प लेते ही पुराने संस्कार नहीं छोड़ पाता है।
पीपल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये उसे 64 पहर तक धैर्यपूर्वक कूटा जाता है;
ऐसे ही बुद्धि और मन को एकमेव करने के लिए बहुत पुरुषार्थ करना पड़ता है, वरना दोनों में द्वंद/अशांति बनी रहती है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
2 Responses
भाव जीव के परिणाम को कहते हैं, इसके लिए भावना भानी पड़ती है।जैन धर्म में भावनाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। उपरोक्त कथन सत्य है संकल्प बुद्धी से लिया जाता है,पर मन संकल्प लेते ही पूराने संस्कार नहीं छोड पाता है । जीवन में बुद्धि एवं मन को एकमेव करनें के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है। अतः बुद्धि के साथ मन को साधना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
बहुत सही , हम संकल्प तो कर लेते है लेकिन मन को साधने में गलती कर देते हैं , जागृत रहना पड़ेगा।