विनोवा भावे, भगवान महावीर और सल्लेखना से बहुत प्रभावित थे।
उन्होंने सल्लेखना पूर्वक अंतिम सांस, भगवान महावीर के निर्वाण के दिन, सूर्यकिरण के साथ, ठीक उस समय ली जब भगवान का निर्वाण हुआ था ।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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जैन धर्म में भावनाओं को बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। धर्मात्मा और धर्म का सम्मान एवं गौरव कम न हो तो ऐसी भावना होना भावानुराग कहलाती है।
अतः उपरोक्त उदाहरण मुनि महाराज ने दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। विनोबा भावे का जीवन भी जैन धर्म से अत्यधिक प्रभावित रहा था, जिसके कारण उनका अंत सल्लेखना विधि पूर्वक सम्पन्न हुआ था।
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जैन धर्म में भावनाओं को बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। धर्मात्मा और धर्म का सम्मान एवं गौरव कम न हो तो ऐसी भावना होना भावानुराग कहलाती है।
अतः उपरोक्त उदाहरण मुनि महाराज ने दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। विनोबा भावे का जीवन भी जैन धर्म से अत्यधिक प्रभावित रहा था, जिसके कारण उनका अंत सल्लेखना विधि पूर्वक सम्पन्न हुआ था।