भाव
“मिथ्यात्व” औदयिक भाव में लिया गया है,
जबकि “सम्यग्मिथ्यात्व” तथा “सम्यग्प्रकृति” क्षयोपशमिक भाव में आते हैं,
क्योंकि दोनौं में ही “समयक्त्व” है, जो क्षयोपशम से ही उदय में आता है ।
पं. रतनलाल बैनाडा जी
“मिथ्यात्व” औदयिक भाव में लिया गया है,
जबकि “सम्यग्मिथ्यात्व” तथा “सम्यग्प्रकृति” क्षयोपशमिक भाव में आते हैं,
क्योंकि दोनौं में ही “समयक्त्व” है, जो क्षयोपशम से ही उदय में आता है ।
पं. रतनलाल बैनाडा जी