हाथी लाख का, मरे तो सवा लाख का;
मनुष्य नाक का, मरे तो ख़ाक का;
पर मानता है अपने को लाखों का।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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4 Responses
मनुष्य जीवन ही अपना कल्याण करने में समर्थ होता है। मनुष्य ही आत्मा से परमात्मा बनने समर्थ होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि हाथी मरे तो सवा लाख का कहा जाता है, लेकिन मनुष्य मरे तो ख़ाक का होता है, जबकि अपने को लाखों का समझता है। अतः मनुष्य की यही बड़ी कमजोरी है। अतः मनुष्य को धर्म से जुड़कर अपने को परमात्मा बनने में समर्थ हो सकता है।
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मनुष्य जीवन ही अपना कल्याण करने में समर्थ होता है। मनुष्य ही आत्मा से परमात्मा बनने समर्थ होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि हाथी मरे तो सवा लाख का कहा जाता है, लेकिन मनुष्य मरे तो ख़ाक का होता है, जबकि अपने को लाखों का समझता है। अतः मनुष्य की यही बड़ी कमजोरी है। अतः मनुष्य को धर्म से जुड़कर अपने को परमात्मा बनने में समर्थ हो सकता है।
Can meaning of “मनुष्य नाक का” be explained please?
नाक यानि घमंडी तो अंत तो खाक ही होगी न !
Okay.