मन तो चंचल ही होता है, चाहे साधु का ही क्यों न हो !
आ. श्री शांतिसागर जी – पर साधु मन के विकल्पों को समाप्त कर देते हैं सो एक (धर्म) जगह टिका रहता है जैसे समुद्र के बीच जहाज पर बैठा पक्षी ।
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उक्त कथन सत्य है कि मन तो चंचल ही रहता है चाहे साधु का ही क्यो न हो अतः आचार्य शांतिसागर महाराज ने सत्य कहा गया है विकल्पों को समाप्त करने पर मन को नियंत्रित किया जा सकता है। अतः मन को नियंत्रित रखना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है, इसके लिए धर्म का आश्रय बहुत आवश्यक है।
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उक्त कथन सत्य है कि मन तो चंचल ही रहता है चाहे साधु का ही क्यो न हो अतः आचार्य शांतिसागर महाराज ने सत्य कहा गया है विकल्पों को समाप्त करने पर मन को नियंत्रित किया जा सकता है। अतः मन को नियंत्रित रखना चाहिए ताकि कल्याण हो सकता है, इसके लिए धर्म का आश्रय बहुत आवश्यक है।