मिथ्या/सम्यग्ज्ञान

ज्ञानी इंद्रिय को गौण करके सम्यग्ज्ञान को जगाता है।
श्रद्धा की आंखों से मति/श्रुत ज्ञान की नयी पर्याय आंखें बंद करके देखता है जैसे स्वप्न में आंखें बंद करके प्रत्यक्ष देखता है, बिना आत्मानुभूति के।
सम्यग्दृष्टि इन्द्रिय-ज्ञान को असत्य मानता है/उसमें लिप्त नहीं होता जैसे पाषाण में भगवान देखता है।

मुनि श्री सुधासागर जी

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6 Responses

  1. मिथ्या का मतलब मिथात्व के सदभाव में होने वाला ज्ञान मिथ्याज्ञान कहलाता है। मिथ्यादर्शन के निमित्त से मतिज्ञान आदि मिथ्या होगा। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि ज्ञानी इन्दिय को गौण करके सम्यक्ज्ञान को जगाता है। सम्यग्दृष्टि इन्दिय ज्ञान को असत्य मानता है, उसमें लिप्त नहीं होता है,वही पाषाण में भगवान देखता है। अतः जीवन में सम्यग्दृष्टि के भाव होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण करने में समर्थ हो सकता है।

    1. बंद आँखों से स्वप्न के नये नये द्रश्य देखते हैं, ऐसे ही श्रद्धा की आँखों से सम्यग्ज्ञान की नयी-नयी पर्याय/ ज्ञान ग्रहण करते हैं।

  2. सम्यग्ज्ञान की नयी-नयी पर्याय/ ज्ञान ya “mati/shrut” gyaan ki?

    1. सम्यग्दृष्टि का मति/श्रुत ज्ञान भी सम्यग्ज्ञान ही होगा न !
      सो दोनों पर्यायवाची हुए न !

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