मुनि शिवभूति जी
शिवभूति मुनि ज्ञानावरण कर्म के तीव्र उदय से अल्पज्ञानी थे। गुरु ने “मा-रुस मा-तुस” सूत्र का चिंतन करने को कहा। सूत्र का अर्थ था, “द्वेष मत करो, राग मत करो”। यह सूत्र भी याद न रहा।
विहार करते समय उन्होंने एक वृद्धा को सूप से कुछ फटकते हुए देखा। पूछने पर वृद्धा ने कहा,”माष (उरद) से तुष (छिलके) अलग कर रही हूँ।”
मुनिराज तुष (शरीर)-माष (आत्मा) के भेद विज्ञान से भाव-विशुद्ध होकर केवलज्ञानी हो गए।
दर्शन-मोह के अभाव में अल्पज्ञान भी मोक्ष दिला देता है।
(कमलकांत)
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मुनि शिवभूति जी का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।