मूर्ति सचित्ताचित्त
मूर्तियों में मुनियों के द्वारा दसों प्राणों की प्रतिष्ठा तथा सूरिमंत्र देकर सचित्त किया जाता है, जैसे आटे के मुर्गे को सजीव मानकर उसे काटा तो ज़िंदा मुर्गे को मारने का दोष लगा ।
पाषाण की मूर्ति प्राय: पृथ्वीकायिक जीवों की अपेक्षा भी सचित्त होती है ।
धातु की मूर्तियाँ धातु की अपेक्षा से अचित्त कही जा सकती हैं ।
मुनि श्री सुधासागर जी