गृहस्थों की अपेक्षा 5 कल्याणक वाले पूर्णता के प्रतीक,
गर्भकल्याणक मंगलकारी ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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तीर्थंकर-जिसके आश्रय से भव्य जीव संसार से पार उतरते हैं वह तीर्थ कहलाता है। तीर्थ का अर्थ धर्म भी है। इसलिए तीर्थ या धर्म का प्रवर्तन करने वाले महापुरुष को तीर्थंकर कहते हैं। तीर्थंकर ही मूलनायक क्यों होते हैं क्योंकि गृहस्थों की अपेक्षा पांच कल्याणक वाले पूर्णता के प्रतीक होते हैं एवं गर्भकल्याणक मंगलकारी होते हैं।
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तीर्थंकर-जिसके आश्रय से भव्य जीव संसार से पार उतरते हैं वह तीर्थ कहलाता है। तीर्थ का अर्थ धर्म भी है। इसलिए तीर्थ या धर्म का प्रवर्तन करने वाले महापुरुष को तीर्थंकर कहते हैं। तीर्थंकर ही मूलनायक क्यों होते हैं क्योंकि गृहस्थों की अपेक्षा पांच कल्याणक वाले पूर्णता के प्रतीक होते हैं एवं गर्भकल्याणक मंगलकारी होते हैं।