मोक्षमार्ग पर प्रगति के लिये….
1. क्रोधी को विनय तप करना चाहिये । यदि उपवास करेगा तो क्रोध और बढ़ेगा ।
2. मानी को वैयावृत और विनय ।
3. मायाचारी को प्रायश्चित ।
4. लोभी को व्युत्सर्ग तप करना चाहिये ।
मुनि श्री अविचलसागर जी
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मोक्षमार्ग का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र,इन तीनों की एकता का नाम है।
तप-विनय का मतलब तप में श्रेष्ठ तपस्वी जनों को भक्ति और अनुराग रखना होता है, इसमें चारित्रवान मुनियों की अवहेलना नहीं करना चाहिए।
तप का तात्पर्य इच्छाओं का निरोध करना होता है,यह बारह प़कार के होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मोक्षमार्ग की प्रगति के लिए 1 क़ोधी को विनय तप करना आवश्यक है, यदि उपवास करता है तो क़ोध बढ़ने की संभावना रहती है।
2 मानी को वैय्यावृत्ति और विनय होना चाहिए।
3 यदि मायाचारी करता है तो प़ायश्चित लेना आवश्यक है।
4 लोभी को व्युत्सर्ग तप करना आवश्यक है।
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मोक्षमार्ग का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र,इन तीनों की एकता का नाम है।
तप-विनय का मतलब तप में श्रेष्ठ तपस्वी जनों को भक्ति और अनुराग रखना होता है, इसमें चारित्रवान मुनियों की अवहेलना नहीं करना चाहिए।
तप का तात्पर्य इच्छाओं का निरोध करना होता है,यह बारह प़कार के होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मोक्षमार्ग की प्रगति के लिए 1 क़ोधी को विनय तप करना आवश्यक है, यदि उपवास करता है तो क़ोध बढ़ने की संभावना रहती है।
2 मानी को वैय्यावृत्ति और विनय होना चाहिए।
3 यदि मायाचारी करता है तो प़ायश्चित लेना आवश्यक है।
4 लोभी को व्युत्सर्ग तप करना आवश्यक है।