मोह से मैं ज्ञानी हूँ – प्रज्ञा भाव,
मैं अज्ञानी हूँ – अज्ञान भाव,
ये भाव मिथ्यात्व से नहीं, क्योंकि संयमियों भी पाये जाते हैं।
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6 Responses
मोह का तात्पर्य जीव हित अहित से विवेक रहित होता है। अज्ञान यानी जानकारी का अभाव रहता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मोह से ज्ञानी हूं प़ज्ञा भाव। में अज्ञानी हूं यानी अज्ञान भाव। अतः ये भाव मिथ्यात से नहीं, बल्कि संयमी में पाए जाते हैं। अतः संयमी होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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मोह का तात्पर्य जीव हित अहित से विवेक रहित होता है। अज्ञान यानी जानकारी का अभाव रहता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मोह से ज्ञानी हूं प़ज्ञा भाव। में अज्ञानी हूं यानी अज्ञान भाव। अतः ये भाव मिथ्यात से नहीं, बल्कि संयमी में पाए जाते हैं। अतः संयमी होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
‘मोह से मैं ज्ञानी हूँ’ ka meaning clarify karenge, please ?
मोह में ही तो कहा जाता है कि मैं ज्ञानी हूँ, यही तो प्रज्ञा-भाव है।
Okay.Lekin, ‘अज्ञान भाव’ hone me kya problem hai ?
Problem कोई नहीं, बस उस अज्ञान अवस्था में अज्ञान-भाव कहा है।
Okay.