घी का घड़ा फूट ना जाये, सो घड़े से राग, सम्यकदृष्टि भगवान से राग ऐसे ही, उनके गुणों से ।
मिथ्यादृष्टि संसार बढ़ाने के लिये राग करता है ।
मनुष्य दूध पीता है तो अमृत बनता है, सांप पीता है तो ज़हर ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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इष्ट पदार्थो में प़ीति या हर्ष रुप परिणाम होना राग है।
मिथ्थादृष्टि जीव जो राग करता है वह अपने जीवन को सफल नहीं कर सकता है।
सम्यग्दृष्टि वाला जीव राग करता है, वही अपने जीवन को सफल और धन्य कर सकता है।
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इष्ट पदार्थो में प़ीति या हर्ष रुप परिणाम होना राग है।
मिथ्थादृष्टि जीव जो राग करता है वह अपने जीवन को सफल नहीं कर सकता है।
सम्यग्दृष्टि वाला जीव राग करता है, वही अपने जीवन को सफल और धन्य कर सकता है।