क्षयोपशम-लब्धि में पाप से घ्रणा तथा कल्याण की ललक आ जाती है।
पर देशना-लब्धि के बिना प्रायोग्य-लब्धि में प्रवेश नहीं मिलता है।
जैसे घी के लिये दही जरूरी है और दही जमाने के लिये गुरु-रूपी जामण की जरूरत होती है।
मुनि श्री सुधासागर जी
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लब्धि का मतलब तपादि विशेष से होने वाली शुद्धि का नाम है।यह पांच प़कार की होती है, इसमें करण लब्धि भव्य जीव के लिए होती है। बाकी चार भव्य एवं अभव्य जीवों के लिए होती हैं। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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लब्धि का मतलब तपादि विशेष से होने वाली शुद्धि का नाम है।यह पांच प़कार की होती है, इसमें करण लब्धि भव्य जीव के लिए होती है। बाकी चार भव्य एवं अभव्य जीवों के लिए होती हैं। अतः उपरोक्त उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।