लौकिक / अलौकिक
लौकिक = लोक से संबधित
सामान्यतः लौकिक का ही ज्ञान अनुभव में आता है, अलौकिक का नहीं। उसे तो जानते / मानते ही नहीं।
अलौकिक के साधक को लौकिक को महत्व नहीं देना चाहिये, क्योंकि अलौकिक असीम है, लौकिक सीमित।
अलौकिक जानने से मोह कम होता है और मोह कम होने पर ही धर्म-ध्यान होता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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लोक का मतलब जिसमें जीव आदि छह द़व्य पाये जाते हैं, जबकि उसके बाहर जीव नहीं हैं, जिसको अलोकाकाश कहा जाता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि लौकिक का मतलब लोक से संबंधित है। सामान्यतः लौकिक ज्ञान अनुभव में आता है, जबकि अलौकिक का नहीं, उसे जानते या मानते भी नहीं हैं । अतः अलौकिक के साधक को लौकिक को महत्व नहीं देना चाहिए, क्योंकि अलौकिक असीम है, जबकि लौकिक सीमित है। अलौकिक जानने से मोह कम होता है,और मोह कम होने पर ही धर्म ध्यान होता है। मुख्यतया इसमें मुनि इस श्रेणी में आते हैं,जो अपने आत्म कल्याण के लिए धर्म ध्यान में ही आस्था रखते हैं।