वाणी में ओज, मृदुता/माधुर्य और प्रसाद (फल) होना चाहिये, ख़ासतौर पर सल्लेखना के समय ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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4 Responses
वाणी के लिए महाराज श्री प़माण सागर महाराज जी ने ग़हस्थो के लिए चार सूत्र बताए थे…
आदेश परत शब्द का उपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि अनुरोध की भाषा बोलना चाहिए।
अपमान सरीखे शब्द का उपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि मान का भाव होना चाहिए।
आलोचना परख शब्दों प़योग का नहीं करना चाहिए बल्कि कोई कमी हो तो उसको गाईड करना आवश्यक है।
इसके अलावा आवेश परख शब्दों का का उपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि शान्ति पूर्वक बोलना चाहिए।
अतः मीठा बोलो,कम बोलो और धीरे बोलना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है। अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि वाणी में ओज,मृदुता और माधुर्य होना चाहिए वहीं सही फल मिल सकता है, इसके लिए खासतौर पर सल्लेखाना के समय आवश्यक है।
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वाणी के लिए महाराज श्री प़माण सागर महाराज जी ने ग़हस्थो के लिए चार सूत्र बताए थे…
आदेश परत शब्द का उपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि अनुरोध की भाषा बोलना चाहिए।
अपमान सरीखे शब्द का उपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि मान का भाव होना चाहिए।
आलोचना परख शब्दों प़योग का नहीं करना चाहिए बल्कि कोई कमी हो तो उसको गाईड करना आवश्यक है।
इसके अलावा आवेश परख शब्दों का का उपयोग नहीं करना चाहिए बल्कि शान्ति पूर्वक बोलना चाहिए।
अतः मीठा बोलो,कम बोलो और धीरे बोलना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है। अतः मुनि श्री सुधासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि वाणी में ओज,मृदुता और माधुर्य होना चाहिए वहीं सही फल मिल सकता है, इसके लिए खासतौर पर सल्लेखाना के समय आवश्यक है।
Vaani mein “prasad” kaise hoga?
प्रसाद कब मिलता है ?
पूजा पूरी होने पर यानि पूजा का फल ।
वाणी ऐसी होनी चाहिये जिसका कुछ फल(प्रसाद मिले) आये/ निकले ।
Okay.