वास्तविक स्वरूप
संसार शोकमय,
काया रोगमय,
जीवन भोगमय,
सम्बंध वियोगमय;
बस, धर्म/सत्संग ही उपयोगमय होता है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
संसार शोकमय,
काया रोगमय,
जीवन भोगमय,
सम्बंध वियोगमय;
बस, धर्म/सत्संग ही उपयोगमय होता है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
One Response
उपरोक्त कथन सत्य है कि जीवन का वास्तविक स्वरूप जानता है वही संसार को शोकमय, काया रोगमय और सम्बन्ध को वियोगमय समझता है।जब जीवन का वास्तविक स्वरूप और आत्मा को पहिचान लेता है,तब धर्म एवं सत्संग ही उपयोगमय हो जाता है।