विकार
महर्षि पराशर नाव से नदी पार कर रहे थे।
सुन्दर युवती अकेले नाव खे रही थी।
महर्षि के मन में विकार आ गया, युवती से निवेदन भी कर दिया।
युवती – सूरज देख रहा है।
महर्षि ने अपने प्रताप से सूरज को बादलों से ढ़क दिया।
युवती – जिस प्रताप से सूरज को ढक दिया उससे अपने विकारों को क्यों नहीं ढ़क पाये ?
महिर्षि ने उस युवती को अपना गुरु मान लिया।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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जीवन में हर मनुष्य के मन में गन्दे या खराब विकारों का भंडार भरा हुआ है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि महर्षि के मन में बुरे विकार थे, उस युवती ने महर्षि को बुरी आदत का एहसास करा दिया था।
जीवन में हर मनुष्य को अपनी बुराईयों को समाप्त करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।