मुनि, भगवान के आगे “108”, “1008” लिखा/कहा जाता है, पर जिनवाणी के आगे क्यों नहीं ?
मुनि/भगवान जीवंत है जबकि जिनवाणी भगवान/मुनियों की पर्याय है ।
पर “श्री” तो सबके आगे लगाना ही चाहिये ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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पूज्य पुरुषों का आदर करना विनय तप होता है अथवा रत्नत्रय के प़ति नम़ता धारण करना होता है।मुनि, भगवान के आगे 108 ,1008 कहा गया है यह उनके गुणो को धारण करने के कारण होता है।जिनवाणी सभी को मार्गदर्शन देने का माध्यम है।मुनि, भगवान जीवंत होते हैं जब कि जिनवाणी मुनियों, भगवान की पर्याय है।श्री लिखना उनके प़ति विनय का प़तीक है, इसके कारण सभी के लिए लिखना आवश्यक होता है।
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पूज्य पुरुषों का आदर करना विनय तप होता है अथवा रत्नत्रय के प़ति नम़ता धारण करना होता है।मुनि, भगवान के आगे 108 ,1008 कहा गया है यह उनके गुणो को धारण करने के कारण होता है।जिनवाणी सभी को मार्गदर्शन देने का माध्यम है।मुनि, भगवान जीवंत होते हैं जब कि जिनवाणी मुनियों, भगवान की पर्याय है।श्री लिखना उनके प़ति विनय का प़तीक है, इसके कारण सभी के लिए लिखना आवश्यक होता है।