विषय-भोग
जब मस्तिष्क/शरीर की क्षमता का बड़ा भाग Unutilized पड़ा है, तो धर्म/अध्यात्म के साथ यदि विषय-भोग में भी Involve रहें तो क्या बुराई है ?
अनंत जन्मों से विषय-भोगों में ही तो Involve रहे हैं/उन्हें ही प्राथमिकता दी है/उनके ही संस्कार हैं/उनका आकर्षण बहुत ज्यादा है। इसलिये इस भव में ज्यादा धर्म करते हुये भी यदि थोड़े से भी विषय-भोगों में Involve होगे तो वे धर्म-ध्यान छुड़ा कर अपनी ओर खींच लेंगे।
चिंतन
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विषय भोग का तात्पर्य इन्दियो के द्वारा अपने योग्य पदार्थ का उपयोग करना होता है।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि मस्तिष्क और शरीर का बड़ा भाग उपयोग किया गया है, लेकिन इनके साथ धर्म और अध्यात्म जुड़ने पर तो विषय भोग काम हो सकता है। अतः जीवन में धर्म ध्यान से जुड़ना आवश्यक है ताकि भोग विषय समाप्त हो सकतें हैं ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।