वृद्धावस्था

चढ़ता सूरज सुंदर लगता है ।
दोपहर का तेजस्वी/पसीना निकाल देता है/उसके सामने सब सिर झुकाते हैं ।
शाम को भाव होते हैं – “डूब मरो”

श्री लालमणी भाई-चिंतन*

* ख़ुद की ढलती उम्र में

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One Response

  1. वृद्धावस्था की तुलना ढ़लते सूरज से, जो सुंदर नहीं लगता है। जबकि दोपहर का तेजस्वी पसीना निकाल देता है, उसके सामने सिर झुकाते हैं, जबकि शाम को भाव होते हैं कि डूब मरो।यही जीवन की वास्तविकता है, कि ढलती उम्र में यही लगता है कि अब जिन्दा नहीं रह सकते हैं।

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