वेद को (नो) कषाय में क्यों लिया गया ?
वेद से कषाय और कषाय से वेद के भाव आते हैं ।
द्रव्य वेद से भी कषाय पैदा होती है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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आत्मा में जो मैथुन या कामसेवन रुप चित्त-विक्षेप उत्पन्न होता है उसे वेद कहते हैं।इसके कारण वेद को कषाय और कषाय से वेद के भाव आते हैं।नामकर्म के उदय से स्त्री और पुरुष के अनुरुप जो योनि, मेहन आदि की रचना होती है वह द़व्य वेद है।अतः सभी वेद का रुप कषाय होता है, यह सब नो कषाय में लिये गये है।
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आत्मा में जो मैथुन या कामसेवन रुप चित्त-विक्षेप उत्पन्न होता है उसे वेद कहते हैं।इसके कारण वेद को कषाय और कषाय से वेद के भाव आते हैं।नामकर्म के उदय से स्त्री और पुरुष के अनुरुप जो योनि, मेहन आदि की रचना होती है वह द़व्य वेद है।अतः सभी वेद का रुप कषाय होता है, यह सब नो कषाय में लिये गये है।