रत्नत्रय-धारियों की निर्दोष रीति से उनका कष्ट दूर करना ।
रत्नत्रय-धारियों के अलावा की वैय्यावृत्ति करने से पुण्यलाभ तो होगा पर निर्जरा नहीं ।
गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
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वैय्यावृत्ति का मतलब गुणीजनो के ऊपर दुख आने पर उसका निवारण करना होता है एवं उनके अनुकूल वातावरण बना देना होता है।रत्नत्रयी वह होते हैं जिनको सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र होता है।रत्नत्रय यानी साधुओ की रोगादि व्याकुल होने पर आहार और औषधि देना होता है जिसके कारण कर्मो की निर्जरा होती है।जब कि रत्नत्रय के अलावा की सेवा करने पर पुण्य की प़ाप्ती होती है।
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वैय्यावृत्ति का मतलब गुणीजनो के ऊपर दुख आने पर उसका निवारण करना होता है एवं उनके अनुकूल वातावरण बना देना होता है।रत्नत्रयी वह होते हैं जिनको सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र होता है।रत्नत्रय यानी साधुओ की रोगादि व्याकुल होने पर आहार और औषधि देना होता है जिसके कारण कर्मो की निर्जरा होती है।जब कि रत्नत्रय के अलावा की सेवा करने पर पुण्य की प़ाप्ती होती है।