वैयावृत्त्य करने से सम्यग्दर्शन प्रौढ़ होता है, स्थितिकरण, उपगूहन तथा वात्सल्य भी पुष्ट होता है ।
ये तो सबसे बड़ा काम है, अन्य सारे काम छोड़कर इसे प्राथमिकता देनी चाहिये ।
दूसरोंं की सेवा से अपनी वेदना मिटती है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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4 Responses
वैयावृत्य का मतलब गुणीजनों के ऊपर दुःख आने पर उसका निवारण या सेवा सुषुता की जाती है, यह एक तप होता है।रोगादि से व्याकुल साधु को प़ासूक आहार /औषधि देना तथा उनके अनुकूल वातावरण बना देना,इसी प्रकार गुणीजनों के ऊपर दुःख आने पर निर्दोष भाव से सेवा करना आवश्यक है।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि वैयावृत्य करने पर सम्यग्दर्शन प़ौढ होता है,स्थितिकरण तथा वात्सल्य भी पुष्ट होता है। अतः अन्य कामों को छोड़कर इस कार्य में प्राथमिकता देना चाहिए एवं दूसरों की सेवा से अपनी वेदना कम होती है।
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वैयावृत्य का मतलब गुणीजनों के ऊपर दुःख आने पर उसका निवारण या सेवा सुषुता की जाती है, यह एक तप होता है।रोगादि से व्याकुल साधु को प़ासूक आहार /औषधि देना तथा उनके अनुकूल वातावरण बना देना,इसी प्रकार गुणीजनों के ऊपर दुःख आने पर निर्दोष भाव से सेवा करना आवश्यक है।
अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि वैयावृत्य करने पर सम्यग्दर्शन प़ौढ होता है,स्थितिकरण तथा वात्सल्य भी पुष्ट होता है। अतः अन्य कामों को छोड़कर इस कार्य में प्राथमिकता देना चाहिए एवं दूसरों की सेवा से अपनी वेदना कम होती है।
सम्यग्दर्शन प्रौढ़ होता है ka kya meaning hai, please?
प्रौढ़ = परिपक्व/ और विशुद्ध।
Okay.